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झाबुआः थांदला 105 वर्षीय बुजुर्ग का अनोखा फैसला, अपने जीवित रहते हुए रखा मृत्यु भोज

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May 31, 2019

दशरथ सिंह कट्ठा- मृत्यु के बाद मृत्यु भोज और परिवार के लोगो का मुंडन होते हुए आपने कई बार देखा होगा। किसी की मृत्यु पर उसके सारे रिश्तेदारों को एकत्र होते हुए देखा होगा, लेकिन बिना मृत्यु हुये व्यकित अपने समाज के लिए मृत्यु भोज रख दे और परिवार के लोग मुंडन भी करवाये, ऐसा कम ही देखा होगा। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ के थांदला में 105 वर्षीय आदिवासी बुजुर्ग वेशिया ने ऐसा ही अनोखा फैसला लेकर सबको चौका दिया हैं। सफेद दाढ़ी और सफेद बालों में लकड़ी के सहारे पैदल चलते और अपने रिश्तेदारों के बीच बैठे बुजुर्ग का नाम हैं वेशिया, उम्र हैं 105 साल। 1914 में जन्मे वेशिया जिले के बहुत पुराने समाजवादी नेता रहे हैं।

परिवार के लोगों ने भी कराया मुंडन

समाजवादी पार्टी के बड़े नेता मामाजी के नाम से प्रसिद्ध मामा बालेश्वर दयाल के साथ बहुत  काम किया। मामाजी का मंदिर भी बनाया, उनकी पूजा भी करते हैं। पिछले कई वर्षो से समाज और ग्रामीणों को जागरूक कर आदिवासी समाज के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। अधिकतर पैदल ही चलते हैं। अपनी मृत्यु के पूर्व पगड़ी और मृत्यु भोज का अनोखा फैसला लेकर चर्चा में बने हुए हैं। इनके साथ इस निर्णय में सहयोग करने वाले अखिल भारतीय संत समाज के रुद्रपुरी जी का कहना है कि इस अवसर पर सभी का मुंडन कार्यक्रम चल रहा है। बिल्कुल वैसा ही जैसा सही में किसी के मर जाने पर होता है। लेकिन ये जीवित व्यक्ति वेशिया के अनोखे फैसले को लेकर हो रहा है।

105 वर्ष के वेशिया के पोते, जिन्होंने अपने दादा की बात मानकर मुंडन करवाया है। कहते हैं कि हमारे दादा की इच्छा थी तो हमने उनकी बात मानकर मृत्यु पूर्व ही इनका घाटा नुक्ता (पगड़ी और मृत्यु भोज) रखा है। हमने परंपरा अनुसार मुंडन भी करवाया है। बहुत प्यार से अपने दादा की टोपी और बाल सही करती दिखी वेशिया जी की परपोती मनीषा। वो बता रही है कि मेरे बड़े दादा जी के मन अनुसार हम उनके मृत्यु भोज की तैयारी कर रहे हैं।

पिता की इच्छा का रखा पुत्रों ने मान

इतनी उम्र के बाद ये ठीक से बोल नहीं पाते, लेकिन कोशिश जरूर कर रहे हैं और बता रहे हैं कि मेरी इच्छा थी कि मेरे मरने के पहले मैं अपनी मृत्यु भोज और पगड़ी की रस्म देख लूँ। सारे रिश्तेदारों और साधु संतों को भी बुलवाया है। इनके पुत्र भिलजी भी बोल रहे हैं कि मेरे पिता ने अपने मुँह से कहा था कि मेरे जीते जी ये कार्यक्रम कर दो। हमें अपनी पिता की इच्छा का मान तो रखना ही था, इसलिये इस भव्य मृत्युभोज का आयोजन किया है।