Jul 2, 2019
मनोज यादव- शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार विभिन्न योजनाएं चला रही है। शासकीय स्कूलों में बच्चों को प्रवेश के साथ तमाम सुविधाएं निशुल्क दी जा रही है, मगर शासकीय मिडिल स्कूल के शिक्षकों को शासन की पहल रास नहीं आ रही। उनके द्वारा स्कूल में अपना कानून चलाया जा रहा है। नया ड्रेस वितरण के नाम पर अभिभावकों की जेब पर डाका डाला जा रहा है। प्रति गणवेश को ₹350 में बेचा जा रहा है।
बच्चों को ड्रेस कोड देने के एवज में ₹350 वसूला जा रहा
जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर कोरकोमा में संचालित शासकीय पूर्व माध्यमिक स्कूल है। इन दिनों यहां भी प्रवेश प्रक्रिया जारी है, मगर यहां पदस्थ शिक्षक शासन के नियमों के विपरीत स्कूल में अपना कानून चलाते हैं। वैसे तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को तमाम सुविधाएं निशुल्क प्रदान की जाती है, मगर यहां पदस्थ शिक्षकों द्वारा गणवेश की दुकानदारी की जा रही है। बच्चों को ड्रेस कोड देने के एवज में ₹350 वसूला जा रहा है। दरअसल इन शिक्षकों को शिक्षा गुणवत्ता में सुधार लाना है। यह लोग शैक्षणिक व्यवस्था के साथ ही बच्चों के लुक को चेंज करना है। इनके मुताबिक सरकार द्वारा मुहैया कराए जाने वाले गणवेश को पहनने से बच्चे गरीब नजर आते हैं, इसलिए इन्होंने शासन के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए स्कूल में नया ड्रेस कोड लागू कर दिया है, जिसकी कीमत ₹350 है। इसके बाद अभिभावक को चूना लगाकर रकम कलेक्ट करने वाला शिक्षक सामने आ गया और नए ड्रेस कोड लागू करने के फैसले को उच्च अधिकारियों का निर्देश बताया।
सरकार की व्यवस्था पर उंगली उठाते हुए स्कूल ने अपना कानून किया लागू
आपको बता दें कि इस स्कूल में बच्चों की दर्ज संख्या 300 के करीब है, यानी गणवेश बिक्री में करीब ₹100000 का फायदा दुकानदार को होना है। अब आप खुद सोचिए, गांव के गरीब ग्रामीण जो खुद के जीवकोपार्जन की समस्या से जूझते हैं, वह भला नये ड्रेस के लिए ₹350 कहां से दें। शिक्षकों की इस मनमानी के संबंध में स्वराज एक्सप्रेस के संवाददाता ने जिला शिक्षा अधिकारी सतीश पांडे से बात की, तो उन्होंने इस मामले की जांच कर कार्यवाही करने की बात कही है।
शिक्षकों का दावा था कि उच्च अधिकारियों ने बैठक लेकर नया ड्रेस कोड लागू करने के निर्देश दिए थे, मगर जिला शिक्षा अधिकारी ने इस बात को सिरे से नकार दिया। सच्चाई इनकी बातों में है, यह तो हम नहीं जानते लेकिन शिक्षा गुणवत्ता सुधारने के नाम पर अभिभावकों की जेब में डाका डालने का मामला काफी गंभीर है। यह पहला मौका है जब किसी विभाग ने सरकार की व्यवस्था पर उंगली उठाते हुए अपना कानून लागू किया है। देखना होगा कि इस मामले में जिला शिक्षा अधिकारी का क्या कार्यवाही करते हैं।