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पीने के पानी की जद्दोजहद, ग्रामीण कर रहे बूंद बूंद पानी के लिए कई किलोमीटर का सफर

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May 7, 2018

नरसिंहपुर जिले गोटेगांव तहसील के आदिवासी अंचलों में पीने के पानी का संकट गहराता जा रहा है। गांव में लगे हैंड पंप हवा उगल रहे हैं और ग्रामीण हैं कि बूंद बूंद पानी के लिए कई किलोमीटर का सफर कर रहे हैं ऐसे में स्वच्छ भारत अभियान के तहत बने शौचालय भी शोपीस बनकर रह रहे हैं।

पीने के पानी का जबरदस्त संकट
गोटेगांव के आदिवासी अंचलों में पीने के पानी का जबरदस्त संकट है जिले के कलेक्टर समय-सीमा की बैठक में हर बार पेयजल को लेकर काफी सख्त दिखाई दे रहे हैं बावजूद कई गांव पीने के पानी को तरस रहे हैं नरसिंहपुर के आदिवासी बहुल गांव पहाड़ी खेड़ा की तस्वीर है जो पहाड़ी की तलहटी से लगा हुआ है यहां पीने के पानी के लिए लोग गांव के बाहर करीब एक किलोमीटर का सफर कर रहे हैं।

पीने के पानी के लिए जद्दोजहद
हालात यह हैं कि कई महिलाओं का सारा दिन पानी लेने में निकल जाता है पहाड़ी की तलहटी से लगे गांव के ये हालात हैं तो पहाड़ी पर बसे हुए दूरस्थ अंचल गांव की कल्पना तो आसानी से की जा सकती है गांव में लगे हैंडपंप हवा उगल रहे हैं ऐसे में पीने के पानी के लिए गांव के बाहर लगे हैंडपंप पर लंबी कतार है ग्रामीण महिलाएं बताती हैं कि पीने के पानी के लिए उन्हें चिलचिलाती धूप रोजाना जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

सरकार का स्वच्छ भारत अभियान खटाई में
क्या महिलाएं क्या बच्चे सुबह सूरज निकलने के साथ एक ही काम में जुट जाते हैं और शाम होते होते बमुश्किल दिन गुजरता है। ऐसे हालात में सरकार का स्वच्छ भारत अभियान भी खटाई में है। यहां बने शौचालय जलसंकट के चलते धूल फांक रहे हैं कहीं शौचालय में मधुमक्खियों ने कब्जा कर रखा है तो कहीं धूल की भरमार है हाल ये हैं कि प्रदेश में सबसे पहले बाह्य शौच मुक्त होने का तमगा लेने वाले जिले के वाशिंदे शौच के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं।

स्वराज एक्सप्रेस ने प्रशासन तक पहुंचाई बात
प्रशासन तक जब स्वराज एक्सप्रेस ने बात पहुंचाई तब वह एक्शन के मूड में आई है हालांकि कितना भला इन आदिवासियों का हो पाता है ये आने वाला वक्त बताएगा फिलहाल आश्वासन का झुनझुना जरूर थमा दिया गया।

बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे लोग
बात साफ है जब बुनियादी सुविधाओं को लोग तरस रहे हैं तो ऐसे में कैसे उन्हें किसी अभियान के लिए जागरूक किया जा सकता है ऐसे में जरूरी था कि पहले वे सुविधाएं जुटाई जाएं जिससे इनके गौरव पूर्ण जीवन जीने का अधिकार इन्हें बेहतर मुनासिब हो सके तभी सरकार की मंशा को बल मिल सकता है।