Jul 2, 2023
अजित की बगावत से महाराष्ट्र के एनसीपी-कांग्रेस के गढ़ में राजनीतिक समीकरण बदल जाएंगे. महाराष्ट्र की राजनीति का इतिहास तीन साल आठ महीने बाद रविवार को फिर दोहराया गया जब अजित पवार ने पांचवीं बार उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. आखिरी बार ऐसा 23 नवंबर, 2019 को हुआ था जब अजित का बीजेपी के साथ लगाव कुछ दिनों तक ही चला पाया था.
अजित और उनके माइंड गेम्स
रविवार को अजित ने एक्शन रीप्ले ही कर के दिखाया लेकिन इस बार उन्हें एनसीपी के 53 में से 40 से अधिक विधायकों का समर्थन प्राप्त था. उन्होंने पार्टी को विभाजित करने का फैसला किया, जबकि उनके चाचा, राकांपा सुप्रीमो शरद पवार, भाजपा से मुकाबला करने के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने में व्यस्त थे. रविवार का घटनाक्रम दोनों के बीच लंबे समय से चले आ रहे शीत युद्ध में भतीजे द्वारा अपने चाचा को मात देने की कोशिश के बारे में भी है. अजित (63) नवंबर 2010 में पहली बार अपनी ताकत का प्रदर्शन करने और पार्टी के दिग्गज छगन भुजबल को फिर से पद देने की अपने चाचा की योजना को विफल करने के बाद डिप्टी सीएम बने. एक आश्चर्यजनक कदम में, उन्होंने सिंचाई घोटाले में अपने खिलाफ आरोपों के बाद सितंबर 2012 में इस्तीफा दे दिया, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार से खुद के लिए "क्लीन चिट" प्राप्त करने के बाद तीन महीने के भीतर वापस आ गए. सात बार के विधायक अजित ,कई विवादों में रहने के बावजूद, विधायकों और कार्यकर्ताओं के बीच अपनी पकड़ रखते है. चुनावी प्रबंधन में एक्सपर्ट नेता अजित ने कई विधायकों को तैयार किया है. पवार की बेटी सुप्रिया सुले के आने के बाद भी उन्हें पार्टी में नंबर दो माना जाता था. राकांपा के एक नेता ने कहा, ''वह पार्टी विधायकों और कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं और पार्टी की रोजमर्रा की गतिविधियों में शामिल होते हैं.'' यही वजह है कि ज्यादातर विधायक उनके साथ हैं.''
पार्टी पर कब्ज़ा करने का अजित का इरादा कोई रहस्य नहीं था. यह तब खुलकर सामने आया जब उन्होंने उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को चुप कराने की कोशिश की जो 2 मई को शरद पवार को पार्टी प्रमुख के रूप में अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए मना रहे थे.
अजित की महत्वाकांक्षाएं मुख्यमंत्री पद तक फैली हुई हैं
वह 2004 में मुख्यमंत्री के पद के करीब थे जब राकांपा ने कांग्रेस से दो सीटें ज्यादा जीती थीं , हालांकि, अधिक कैबिनेट पदों के बदले में शरद पवार ने कांग्रेस को यह पद दे दिया. दृढ़ निश्चयी अजीत ने विधायकों के बीच समर्थन सुनिश्चित किया और 2010 में अपने चाचा को उप मुख्यमंत्री बनाने के लिए दबाव डाला. तब से, उन्होंने चार बार उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है.