Loading...
अभी-अभी:

खतरे का तापमान, अब तक का सबसे गर्म महीना रहा जुलाई, कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश न लगना है अहम वजह

image

Aug 17, 2023

बढ़ते तापमान की समस्या के समाधान के तौर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने पर जोर दिया जाता है। लेकिन जो विकसित और धनी देश सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, वे अपने ऊपर से यह जिम्मेदारी टालते रहते हैं। इसके बाद दुनिया के वैसे विकासशील देशों पर इसका बोझ डालने की कोशिश होती है, जो अपेक्षया इस समस्या के लिए कम जिम्मेदार हैं। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। इस मसले पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होते रहते हैं और उनमें वैश्विक स्तर पर तापमान में बढ़ोतरी के कारणों और उसके समाधान पर विचार किया जाता है। लेकिन जमीनी स्तर पर इस सबका हासिल क्या रहा है, यह छिपा नहीं है। हालत यह है कि तापमान में बढ़ोतरी की समस्या अब ऐसी शक्ल अख्तियार करती जा रही है, जिसमें ऐसा लगता है मानो बहुत कुछ हाथ से छूट रहा हो।

यूरोप जलवायु निगरानी संगठन ने की पुष्टि 


मसलन, इस साल जुलाई महीने को अब तक के सबसे गर्म महीने के तौर पर दर्ज किया गया है। यूरोपीय जलवायु निगरानी संगठन ने मंगलवार को आधिकारिक रूप से इस बात की पुष्टि की है कि इस वर्ष के जुलाई माह ने गर्मी के पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। इसके अलावा, यूरोपीय संघ के अंतरिक्ष कार्यक्रम की इकाई 'कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस' ने मंगलवार को बताया कि जुलाई में दुनिया का औसत तापमान 16.95 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

वैज्ञानिकों ने इसे बताया घातक 

यह 2019 में दर्ज सबसे ज्यादा औसत तापमान से करीब एक तिहाई सेल्सियस अधिक है। तापमान में यह अंतर इसलिए भी दुनिया की चिंता बढ़ा रही है कि वैज्ञानिक इसे असामान्य बता रहे हैं। आमतौर पर वैश्विक तापमान का रिकार्ड एक डिग्री के सौवें या दसवें अंतर से टूटता है। इस बार तापमान का जो अप्रत्याशित रुख दिखाई दे रहा है, वह आम लोगों और पृथ्वी, दोनों के लिए घातक परिणाम देने वाला साबित हो सकता है।पिछले कुछ समय से मौसम के अति कठोर होते जाने की वजहें तापमान के इसी उतार-चढ़ाव में छिपी हैं। अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम और मेक्सिको में जानलेवा गर्म हवाएं चल रही हैं तो यह बेवजह नहीं हैं। अब अगर दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी बढ़ते तापमान की वजह से बिगड़ते हालात की खबरें आ रही हैं, तो यह एक तरह से गहराती समस्या की ही कड़ियां हैं। विडंबना यह है कि आए दिन होने वाली बैठकों में वैज्ञानिक और पर्यावरणविद जलवायु में आती विकृति के लिए कोयला, तेल और प्राकृतिक जीवाश्म ईंधन के उपयोग से जलवायु की निरंतरता में होने वाले बदलाव को जिम्मेदार ठहराते हैं। तात्कालिक स्तर पर इस मसले के हल के लिए कुछ बिंदुओं पर सहमति भी बनती है। लेकिन फिर कुछ समय बाद सब कुछ पहले की तरह चलने लगता है।सवाल है कि अगर कार्बन उत्सर्जन को बढ़ते तापमान का एक अहम कारक माना जा रहा है और वैश्विक सम्मेलनों में इस पर अंकुश लगाने के लिए रूपरेखा बनाई जाती है तो वह अब तक जमीन पर क्यों नहीं उतर सकी है। या फिर क्या इस मसले पर तय मानकों को ज्यादा व्यावहारिक बनाए जाने की जरूरत है, ताकि विकासशील देशों को भी इस पर गौर करना जरूरी लगने लगे? बढ़ते तापमान की समस्या के समाधान के तौर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने पर जोर दिया जाता है। लेकिन जो विकसित और धनी देश सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, वे अपने ऊपर से यह जिम्मेदारी टालते रहते हैं। इसके बाद दुनिया के वैसे विकासशील देशों पर इसका बोझ डालने की कोशिश होती है, जो अपेक्षया इस समस्या के लिए कम जिम्मेदार हैं।इस खींचतान का नतीजा यह है कि दिनोंदिन हालात बिगड़ते जा रहे हैं। बढ़ते तापमान की वजह से कई देशों में बेलगाम गर्मी, जंगलों में आग लगने से लेकर हिमनदों के पिघलने और समुद्र का स्तर ऊंचा होने को लेकर आशंकाएं गहराती जा रही हैं। जरूरत इस बात की है कि इस मसले पर चिंता जताने से आगे बढ़ कर दुनिया के सभी देश किसी ठोस और व्यावहारिक हल तक पहुंचें।

Report by- Ankit tiwari