Jan 4, 2023
ग्रीन हाइड्रोजन के लिए ग्लोबल हब बनेगा भारत: अनुराग ठाकुर
यह परियोजना सतलुज नदी पर 2,614 करोड़ रुपये की लागत से बनेगी
पीएम मोदी के नेतृत्व में आज बुधवार 4 जनवरी को हुई कैबिनेट की बैठक में अहम फैसले लिए गए हैं। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि भारत ग्रीन हाइड्रोजन का ग्लोबल हब बनेगा। हर साल 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होगा।
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने आज जानकारी दी कि पीएम मोदी के नेतृत्व में कैबिनेट की बैठक में अहम फैसले लिए गए हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दे दी। भारत ग्रीन हाइड्रोजन के लिए एक वैश्विक केंद्र बन जाएगा। सालाना 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होगा।
ग्रीन हाइड्रोजन हब विकसित करने के लिए 400 करोड़ का प्रावधान
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि 60-100 गीगावॉट क्षमता का इलेक्ट्रोलाइजर तैयार किया जाएगा। इलेक्ट्रोलाइजर के उत्पादन और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए प्रोत्साहन के रूप में 17,490 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। ग्रीन हाइड्रोजन हब विकसित करने के लिए 400 करोड़ रुपये रखे गए हैं।
यह परियोजना सतलुज नदी पर 2,614 करोड़ रुपये की लागत से बनेगी
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के लिए आज 19,744 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं। यह मिशन 8 लाख करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष निवेश उत्पन्न करेगा और इसके माध्यम से 6 लाख नौकरियां प्रदान करेगा। इसके अलावा उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के लिए 382 मेगावाट सुन्नी बांध जलविद्युत परियोजना को मंजूरी दी गई है। 2,614 करोड़ खर्च होंगे। और यह प्रोजेक्ट सतलुज नदी पर बनेगा।
जानिए क्या है ये ग्रीन हाइड्रोजन...
ग्रीन हाइड्रोजन एक प्रकार की स्वच्छ ऊर्जा है, जो अक्षय ऊर्जा जैसे सौर ऊर्जा का उपयोग करके पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करके उत्पादित की जाती है। पानी में बिजली प्रवाहित करने पर हाइड्रोजन पैदा होती है। यह ऊर्जा हाइड्रोजन से कई चीजों को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए उपयोग की जाने वाली बिजली नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न होती है। और इससे प्रदूषण नहीं होता है। और इसीलिए इसे ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है। पर्यावरणविदों का दावा है कि यह तेल शोधन, उर्वरक, स्टील और सीमेंट जैसे भारी उद्योगों को डीकार्बोनाइज करने में मदद कर सकता है। इसलिए यह वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी मददगार साबित होगा।