Aug 26, 2024
मेरे तो गिरधर गोपाल..दूसरों ना कोई.. कृष्ण भगवान को समर्पित यह भजन मीरा बाई का है. मीरा कृष्ण की वो भक्त मानी गई जिन्हे अब कृष्ण भक्तों द्वारा पूजा जाता है. पौराणिक कथाओं की माने तो मीरा बाई जहां भगवान कृष्ण की पूजा करती थी , संतो के साथ सतसंग करती थी. उस जगह को आज सांवलिया सेठ कहते है. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में प्रसिध्द कृष्ण धाम भगवान संवालिया सेठ के नाम से मशहूर है.
क्यों प्रसिध्द है यह मंदिर
राज्स्थान का सांवलिया सेठ मंदिर प्रसिध्द है अपने दान के लिए. और इसिलिए ही यहां पर कृष्ण भगवान को सेठ की उपाधी दी गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार , मंदिर में हर महीने की चतुर्दशी पर दान पेटी खोली जाती है. बात करे 2024 जुलाई के चढ़ावे की तो राशी 12 करोड़ 5 लाख 81 हजार तक पहुंच गई. मंदिर प्रशासन की माने तो इस दान राशी का इस्तमाल मंदिर के मेंटेनेंस के लिए किया जाता है और श्रध्दालुओं की सुविधाओं के लिए किया जाता है. यहां पर आये चढ़ावे से आस-पास के 16 गांवों के विकास के लिए भी धन राशी दी जाती है.
यहां कृष्ण भगवान है बिजनेस पार्टनर
सांवलिया सेठ मंदिर को खास तौर पर व्यापार से संबंध रखने वाले लोग बहुत मानते है. ऐसा माना जाता है की संवलिया सेठ की पूजा-अर्चना करने से व्यापार में भी तरक्की होती है. इसी कारण से यहां पर व्यापारी लोग भी बड़ी तादाद में सांवलिया सेठ को पूजते है. कई व्यापारी सांवलिया सेठ को अपना बिजनेस पार्टनर भी मानते है.
मंदिर का इतिहास क्या है ?
ऐसा माना जाता है की दयाराम नाम के संत की जमात के पास भगवान कृष्ण की सुंदर मूर्तियां थी. संतो की जमात को जब इस बात की खबर लगी की औरंगजेब की सेना मंदिरों की तोड़-फोड़ करते हुए मेवाड़ पहुंचे वाली है और जब सेना मेवाड़ पहुंची तब वो भगवान की इन मूर्तिओं की भी तलाश करने लगी. जब संतो को इस बारे में पता चला की अब सेना की नज़रे इन मूर्तिओं पर भी है तब संत दयाराम ने इस मूर्तिओं को बांगुड-भादसौड़ा की छापर में एक पेड़ के नीचे गड्डा खोदकर गाड़ दिया था. कुछ समय क बाद मंडफिया गांव के निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के व्यक्ति, जो एक ग्वाला भी था, को सपना आता है की भगवान की कुछ मूर्तियां जम़ीन में दबी हुई है. सपने में बताया गया की भादसोड़ा-बागूंड गांव की सीमा पर यह मूर्तिया दबी हुई है. जिस जगह को सपने में बताया गया था. उसी जगह पर जब खुदाई की गई तब पता चला की वहां से भगवान की चार मूर्तियां निकली. यह खबर आस-पास के सभी गांवों में फैल गई. जैसे ही लोगो को पता चला वहां पर भीड़ लगने लगी. जिसके बाद यह तय किया गया की 4 मूर्तिओं में से सबसे बड़ी मूर्ती को भादसोड़ा गांव ले जाया गया जहां पर पुराजी नाम के एक प्रसिध्द संत रहते थे. उनके निर्देश पर ही मेवाड़ राज परिवार ने सांवलिया जी का मंदिर बनवाया था.
दूसरी मूर्ती को वहीं खुदाई की जगह पर स्थापित कर दिया गया. तीसरी मूर्ती को भोलाराम गुर्जर अपने घर ले गये और वहीं पर पूजा करने लगे. चौथी मूर्ति निकालते समय खण्डित हो गई थी जिस वजह से उस मूर्ती को वापस वहीं रख दिया गया.