Aug 27, 2016
रायपुर। कोर्ट के फैसले के बाद 13 साल का इंतजार और 10 साल का संघर्ष एक मुकाम पर पहुंच गया है। बावजूद 2003 का PSC इम्तिहान एक कड़वा अहसास हमेशा बना रहेगा। किसी अभ्यार्थी का नंबर कम कर दिया गया तो किसी अभ्यार्थी की फार्म में छेड़छाड़ कर दी गई थी ।ये सब तत्कालीन पीएससी चेयरमैन अशोक दरबारी के इशारे पर हुआ है। इस पूरे खेल में परीक्षा नियंत्रक बीपी कश्यप और चयन शाखा के अनुभाग अधिकारी लोमेश कुमार मढ़रिया शामिल थे। इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है।
2003 पीएससी को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई ने कईयों के चेहरे पर खुशियां बिखेर दी तो कईयों के चेहरे मुरझा दिये थे । कोर्ट के फरमान बाद फिर सियासी गलियारों में तूफान मचा दिया है। कांग्रेस इस मामले में दोषियों के खिलाफ अब एफआईआर दर्ज कराने की मांग कर रही है। तो वहीं आरटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला ने मामले की सीबीआई जांच को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिया है। दरअसल कोर्ट के आदेश के पहले इस मामले की एसीबी ने साल 2011 में जांच की थी.. । बावजूद किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई। मुख्य याचिकाकर्ता वर्षा डोंगरे के साथ तो इन अफसरों ने इतनी ज्यादती कि…डीएसपी रैंक की हकदार वर्षा को एक्साइज इंस्पेक्टर तक पोस्ट नहीं दिया.. ।
जानकारी के अनुसार परिक्षार्थी रहे प्रदीप जिसे कुल 1349 अंक मिले थे उसका भी चयन हुआ था।वहीं 1347 अंक लाने वाले राजेंद्र कुमार जायसवाल का चयन वाणिज्यकर निरीक्षक के तौर पर कर लिया गया था। अस्थायी जाति प्रमाण पत्र होने के बावजूद नबोदिता पारा और हसनलालगोहिया को अनारक्षित बताकर महिला बाल विकास अधिकारी के पद से वंचित कर दिया गया था । जबकि उनसे कम अंक पाने वाले मुक्तानंद खुंटे रेणु प्रकाश अरविंद वाणी व सौदागर तांडे का चयन कर लिया गया। 1256 अंक हासिल करने वाली मनीषा डेहरिया को 254वां स्थान मेरिट सूची में दिया गया। जबकि 271वां स्थान हासिल करने वाली निरुपमा लोन्हारे का चयन आबकारी निरीक्षक के तौर पर कर लिया गया। जानकारी के अनुसार डिप्टी कलेक्टर के 18 पद थे। जिसमें से 10 पद अनारक्षित, 3 पद अनुसूचित जाति और 3 पद अनुसूचित जनजाति और 2 पद ओबीसी के थे। मेरिट सूची में 1 से 10 तक पदअ नारक्षित किया था।बावजूद राजीव सिंह चौहान का चयन 11वें स्थान पर किया गया और उसे अनुसूचित जाति वर्ग का बताया गया। जबकि चौहान ने खुद आवेदन मे अपने को अनारक्षित जाति का बताया था। डीएसपी के 5 पद अनारक्षित थे। जिसमें एक पद महिला के लिए आरक्षित था.. । अनारक्षित 5 पदों में एक महिला का चयन होने के बावजूद 7वें स्थान पर आई नेहा पांडे का चयन किया गया.. जो आरक्षित वर्ग का पद था।
जांच के दौरान ये पता चला है कि चेयरमैन रहते हुए ना तो अशोक दरबारी ने अपनी जिम्मेदारी निभाई और ना ही परीक्षा नियंत्रक बीपी कश्यप ने। कश्यप अपनी मनमानी करते थे। परिणाम जारी होने के प्रतिक्षा सूची बनाई गयी जिसमें भी बड़े पैमाने पर धांधली पाई गई है।