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मरवाही के जंगलों में हो रहा अवैध कब्जा, ग्रामीण लगा रहे अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप

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Mar 4, 2019

विप्लव गुप्ता- मरवाही वन मंडल में फर्जी पट्टों के सहारे जंगल की  सैकड़ों एकड़ ज़मीन पर भू माफियाओं द्वारा अवैध  कब्जा कर ज़मीन हथियाने का  बड़ा मामला सामने आया है। स्थानीय ग्रामीण मामले में निचले तबके के अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं। उच्च अधिकारी मामले में जांच कर कार्यवाही की बात कह रहे हैं।

हरियाली प्रसार, हरिहर छत्तीसगढ़ जैसी तमाम वन विस्तार, प्रबंधन और संवर्धन के लिए बनी योजनाओं के बावजूद मरवाही वन मंडल में भू माफिया तेजी से सक्रिय हो रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में मरवाही वन मंडल के पेंड्रा वनपरिक्षेत्र के अमारू, रामगढ़, शंकरगढ़,  कोटगार और कोटमीखुर्द  जैसे वनग्रामों में जहां घने जंगल होने चाहिए, जंगल के कई किलोमीटर भीतर भू माफियाओं ने कब्जा कर लिया है, जो जंगल बाहर से हरे भरे दिखते हैं, कुछ दूर जाते ही हरियाली गायब हो जाती है। जंगल के भीतर ईंट रखे हुए हैं, लोगों ने घर बना लिए हैं, पेड़ों की कटाई जारी है। वन विभाग के रिकॉर्ड में जो क्षेत्र काला जंगल दर्ज है, वहां बाड़ बंदी कर  साल सरई के सैकड़ों पेड़ों को अपने कब्जे में ले लिया गया है और इन सब के पीछे फर्जी पट्टों का सहारा लिया जा रहा है।

जो गरीब थे, उनका कब्ज़ा वनविभाग ने तोड़ दिया

वन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष की माने तो पिछले 6-7 सालों में कई लोगों ने कब्जा किया है। कब्जाधारियों में सरकारी शिक्षक भी शामिल हैं,  इन्हें जब ग्राम के मज़दूर नहीं मिलते तो दूसरे गांव से गुपचुप मज़दूर लाकर रातों रात निर्माण और कब्जा कर लेते हैं। उनके अनुसार कुछ वर्ष पूर्व ऐसी ही झोपड़ी और कब्जे को उन्होंने खुद भी वन विभाग के साथ कार्यवाही में तोड़ा है, पर वापस फिर से कब्जा हो गया। वहीं स्थानीय पंच और सामाजिक कार्यकर्ता कब्जे के पीछे अलग कहानी बताते हैं। उनका कहना है कि ज्यादातर लोगों के पास पहले से ज़मीन है। बावजूद जंगल के अंदर नया पट्टा लेने के लालच में लकड़ी कटाई कर  जेसीबी मशीनों से जंगल में खेत बना कर जंगल कब्जा कर रहे हैं। जिनके पास कई एकड़ ज़मीन है, वह भी जंगल के अंदर 10-10 एकड़ ज़मीन पर कब्जा कर चुके हैं। उनका आरोप है कि जिन लोगो से सांठगांठ हो गई। उनका कब्ज़ा आज भी है और जो गरीब थे, उनका कब्ज़ा वनविभाग ने तोड़ दिया, सब कुछ पैसों के खेल से निचले स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहा है। वन विभाग पूरी तरह नाकाम हो गया है। फ़र्ज़ी पट्टों के सहारे जंगल के अंदर की ज़मीन पर कब्जा बता रहे हैं। प्रशासन और विभाग को चाहिए कि पट्टे की जांच कर ली जाए ताकि दूध का दूध पानी का पानी हो जाए।

मामला सामने आने के बाद वन मंडलाधिकारी ने जांच की शुरू

वन भूमि पर वन माफियाओं ने कुछ इस तरह कब्जा किया है कि वन विभाग का मुनारा जहां से वन विभाग की हद शुरू होती है, ऐसे कई मुनारो को ही कब्जे में ले  लिया है। भूमाफियाओं ने आनन फानन में वन भूमि पर खेत तैयार किए हैं जो देखने में साफ नज़र आ रहे हैं, हालांकि मामला सामने आने के बाद वन मंडलाधिकारी ने जंगल में जांच टीम भेजकर जांच शुरू करा दी है। साथ ही फर्जी पट्टे की बात सामने आने के बाद उसकी भी जांच के साथ साथ  निचले स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत की भी जांच कराने की बात कही है। सरकार ने भूमिहीन आदिवासी परिवारों को वन अधिकार पट्टा देने की योजना काफी समय से चला रखी है जिसका लाभ ऐसे परिवारों को मिलता भी रहा है। इन की आड़ में फर्जी पट्टे बनाकर भूमाफिया सैकड़ों एकड़ ज़मीन पर कब्जा कर रखे हैं। अब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद विभाग से बड़ी कार्यवाही की उम्मीद है।