Dec 17, 2022
वादों के सहारे, लगेंगे किनारे
23 का दंगल, रेवड़ियों से होगा मंगल
सौगातों की रसमलाई, कर्ज की बढ़ती खाई
खैराती सरकार, कैंसे होगा उद्धार
कमलनाथ के राम, बनायेंगे काम
1 रुपए यूनिट बिजली, सियासत होगी उजली
खोलेंगे पेंशन का पिटारा, कमलनाथ का नया नारा
पुलिस को मिलेगा अवकाश, होगा बहुत विकास
किसका होगा राम गमन पथ? कौन लेगा शपथ
मध्यप्रदेश में 2023 में सत्ता में आने को बेताब कांग्रेस अब रेवड़ियों के सहारे मतदाताओं को रिझाने की कोशिश में है। चुनाव से 11 महीने पहले ही कमलनाथ ने लोकलुभावन वादे करने शुरू कर दिए हैं। कमलनाथ ने एक रुपए यूनिट बिजली देने से लेकर पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली और किसानों की कर्ज माफी से लेकर राम वन गमन पथ और गौशाला निर्माण जैसी घोषणाओं को आधार बनाकर चुनावी बिसात बिछाना शुरू कर दिया है। इधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी जनसेवा अभियान जैसे कार्यक्रमों के जरिए भोपाल नहीं चौपाल से सरकार चलाने जैसे बड़े-बड़े वादे करते दिख रहे हैं। जाहिर है 2023 का दंगल बहुत कुछ दिखाने वाला है। मतदाताओं को बड़ी-बड़ी फायदे की घोषणाओं का पिटारा देखने मिलेगा। राम से लेकर रोटी तक सस्ती बिजली किसकी राह उजली करेगी यह देखना दिलचस्प होगा।
2023 का दंगल वादों के सहारे लड़ा जाने वाला है। जब सियासी तरकस के सारे तीर खत्म हो गए तो बचा है लोकलुभावन वादे का वह ब्रह्मास्त्र जिसे जीत की राह का अचूक हथियार माना जाता है। कमलनाथ इसी राह पर हैं कमलनाथ एक रुपए यूनिट सस्ती बिजली देने का वादा कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से कमलनाथ रोज एक ट्वीट कर एक नया वायदा जनता के सामने रखते हैं। कमलनाथ ने राम वन गमन पथ के निर्माण से लेकर पंचायत स्तर में फिर से गौशाला में बनाने जैसे भावनात्मक वादों को हाथ में लिया है, तो पुलिस को अवकाश देने, पुरानी पेंशन स्कीम शुरू करने और एक रुपए यूनिट बिजली देने जैसे वायदे करके जनता को लुभाने की कोशिश शुरू कर दी है। कमलनाथ ने किसानों की कर्ज माफी को भी मुद्दा बनाने का मन बना लिया है
कमलनाथ एक के बाद एक ऐसी घोषणाएं कर रहे हैं जो सरकारी खजाने का सीना चीर सकती हैं। कमलनाथ जब सरकार में आएंगे तब ऐसा करेंगे लेकिन शिवराज सरकार भी सरकारी खजाने की परवाह किए बगैर एक के बाद एक बड़ी बड़ी घोषणाएं कर रही है। खजाना सूखता जा रहा है कर्ज बढ़ता जा रहा है लेकिन एक लाख नियुक्तियों की राह खोल दी गई है क्योंकि सरकार बनाना है। सरकार शिवराज की बने या कमलनाथ की। खजाने में इतनी ताकत कहां जो इनके भारी-भरकम वादों को पूरा करने का बोझ उठा सके। हालांकि बीजेपी प्रधानमंत्री की नीति के चलते सस्ती बिजली और कर्जमाफी जैसे वादे नहीं कर रही है लेकिन कमलनाथ के ऐसे बायदो से परेशान जरूर है, राम से लेकर रोटी तक कमलनाथ के अचूक माने जा रहे वायदों पर बीजेपी हमलावर है।
वायदों की रेवड़ियां सियासत की चासनी में डूबकर मतदाताओं के मुंह में पानी ला सकती हैं। इतिहास गवाह है लोकलुभावन वायदों ने राजनीतिक दलों की सत्ता की राह आसान की है। ये बात अलग है कि वायदों के बोझ तले दबे सूबे के अर्थगणित की परवाह नहीं की गई। सियासत के राजसी खर्चों और वायदों को पूरा करते करते एमपी तीन लाख करोड़ के कर्ज के डूब गया। ना तो बीजेपी की सरकार बढ़ते कर्ज की जिम्मेदारी लेती दिखती ना ही कांग्रेस ये बताने को तैयार है कि इतने वादे पूरे करने का बजट आएगा कहां से।








