Oct 12, 2025
शंकरलाल तिवारी: मीसाबंदी से विधायक तक का प्रेरणादायक सफर, दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस
मध्य प्रदेश की राजनीति के एक बेबाक और संघर्षपूर्ण चेहरे, पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी का निधन हो गया। 8 अप्रैल 1953 को सतना जिले के चकदही गांव में जन्मे तिवारी ने जीवन भर गरीबों और सर्वहारा वर्ग की आवाज बनी रही। दिल्ली के एम्स अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली, जिससे सतना और पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े तिवारी की बेबाकी ऐसी थी कि वे दुश्मन भी उनकी हिम्मत की तारीफ करते थे। वे अपने पीछे पत्नी सुषमा तिवारी, तीन बेटों राजनारायण, आशीष व पुनीत, बेटी विजयश्री और एक विशाल परिवार छोड़ गए। सतना के सुभाष चौक पर उनके पुस्तैनी मकान में आज भी उनकी यादें गूंज रही हैं।
बचपन से संघर्ष की नींव: आरएसएस का समर्पित स्वयंसेवक
शंकरलाल तिवारी का जीवन एक जीवंत कहानी की तरह था, जहां हर कदम पर संघर्ष और साहस की मिसाल मिलती है। मात्र 10-12 साल की उम्र में वे आरएसएस के बाल स्वयंसेवक बन गए। 1975 तक वे स्थानीय स्तर पर युवाओं के बीच 'बेबाक नेता' के रूप में पहचान बना चुके थे। आपातकाल के काले दिनों में उनकी हिम्मत की सबसे बड़ी परीक्षा हुई। इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 18 महीने तक रीवा, टीकमगढ़ और सतना की जेलों में 'मीसाबंदी' के रूप में गुजारे। जेल से बाहर आते ही उन्होंने भाजपा की कमान संभाली। जिले में विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने युवाओं को संगठित किया। एक बार जेल से रिहा होने पर उन्होंने कहा था, "जेल ने मुझे नहीं तोड़ा, बल्कि मजबूत बनाया। अब संघ की ज्योति और तेज जलाऊंगा।" यह किस्सा आज भी सतना के युवाओं को प्रेरित करता है।
चुनावी रणनीति का जादूगर: तीन बार सतना का विधायक
राजनीतिक सफर में तिवारी की चतुराई और जनसंपर्क कला कमाल की थी। 1998 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उन्होंने पहला चुनाव लड़ा, जो एक साहसिक कदम था। लेकिन असली कमाल 2003, 2008 और 2013 में हुआ, जब भाजपा के टिकट पर वे लगातार तीन बार सतना से विधायक बने। हर चुनाव में वे गरीबों के मुद्दों को इस तरह उठाते कि विरोधी भी चुप हो जाते। 2013 की जीत के बाद उन्होंने विधानसभा में सर्वहारा वर्ग के लिए विशेष योजनाओं का प्रस्ताव रखा, जो मध्य प्रदेश की राजनीति में मील का पत्थर साबित हुआ। समर्थक बताते हैं कि तिवारी की सभाओं में हंसी-मजाक के बीच गंभीर मुद्दे सुलझ जाते थे। वे कहते, "राजनीति तलवार की धार पर चलना है, लेकिन जनता की सेवा ही असली हथियार है।" उनके निधन से भाजपा में शून्य पैदा हो गया है।
तिवारी का निधन न केवल सतना, बल्कि पूरे मध्य प्रदेश के लिए क्षति है। उनके जैसे नेता दुर्लभ होते हैं, जो जेल की सलाखों से विधानसभा की कुर्सी तक पहुंचे। सतना में शोक सभा आयोजित हो रही है, जहां हजारों लोग उनकी यादों को ताजा कर रहे हैं।