Feb 6, 2018
इटारसी। महाशिवरात्रि का पावन त्यौहार नजदीक है। इस त्यौहार से हिन्दु धर्म के लोगों को बड़ी आस्था जुड़ी है। इस दिन लोग अपने-अपने इलाकों में स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिरों में मत्था टेकने जरुर जाते हैं। आइए हम आपको इटारसी के उस प्रसिद्ध ऐतिहासिक शिव मंदिर लेकर चलते हैं। बरसों पहले आदिवासियों ने इस मंदिर की स्थापना की थी। आदिवासी समुदाय के बीच आस्था के प्रतीक बड़ा देव अब समूचे होशंगाबाद जिले में तिलक सिंदूर वाले महादेव के नाम से जाने जाते हैं। हर शिवरात्रि पर यहां करीब दो लाख लोग दर्शन करने पहुंचते हैं।
सतपुड़ा पर्वत पर घने जंगलों के बीच स्थित है ये मंदिर...
सतपुड़ा पर्वत श्रंखला में भगवान शिव के अनेक स्थान ऐसे हैं, जहां से उनकी कथाएं जुड़ी हैं। सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी में शिव के अनेक स्थान हैं तो इसी सतपुड़ा की पर्वतमाला पर एक स्थान ऐसा है, जहां शिव के होने का अहसास होता है। इटारसी तहसील के ग्राम जमानी से लगभग 8 किलोमीटर दक्षिण दिशा में सतपुड़ा पर्वत पर घने जंगलों के बीच स्थित है तिलकसिंदूर का शिव मंदिर। वैसे तो यह स्थान वर्षों पूर्व खोज लिया गया था, लेकिन तब से अब तक इसे विकास की जो राह मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल सकी है। उत्तरमुखी शिवालय सतपुड़ा की लगभग 250 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जिसके आसपास सागौन, साल, महुआ, खैर आदि के हजारों पेड़ लगे हैं। यहां का मुख्य आकर्षण छोटी धार वाली हंसगंगा नदी और इसके दोनों किनारों पर लगातार कतारबध्द प्राकृतिक आम के पेड़ हैं।
शिवरात्रि पर गोंड आदिवासी ही करता है पूजा...
इस शिवालय से पश्चिम की ओर पहाड़ी की तलहटी में छिन्नमस्तिका देवी की एक प्रतिमा थी जिसके विषय में बताया जाता है कि कुछ वर्ष पूर्व इसे कोई ले गया। गोंडकालीन परंपरा शिवालय में किस प्रकार चली आ रही है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस मंदिर में शिवरात्रि के अवसर पर भोमका (गोंड आदिवासियों का पुजारी) ही पूजा कराता है, कहा जाता है कि गोंड राजाओं द्वारा भोमका को इस शिवालय की पूजन के लिए अधिकृत किया गया था। यही परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही है। मंदिर के सामने पहाड़ी पर ही दाहिनी ओर कालभैरव की प्रतिमा विद्यमान है, जो गोंडकालीन संस्कृति की कहानी कहती है। काल भैरव को भी गोंड लोग पुराने समय से श्रध्दा से पूजते रहे हैं।
क्षेत्रीय संस्कृति के दुर्लभ दर्शन..
तिलकसिंदूर में प्राचीन काल से मेला लगता है, इसमें क्षेत्रीय संस्कृति के दुर्लभ दर्शन अत्यंत सुगमता से होते हैं। मेला भरने का मुख्य कारण यहां प्रतिवर्ष होने वाला यज्ञ है। यहां गुफा मंदिर के बायीं ओर पहाड़ी पर ऊपर पार्वती महल का निर्माण सन् 1971 में प्रारंभ हुआ। इसके निर्माण की शुरुआत इटारसी से आमला रेलखंड के रेलकर्मियों ने अर्थप्रबंध कर की थी। इसका शिलान्यास सन 1971 में जमानी के पूर्व मालगुजार पंडित पुरुषोत्तमलाल दुबे ने किया था। क्षेत्र की जनता के अपार सहयोग से इस भवन का निर्माण कार्य 1972 में पूर्ण हुआ। इस गुफानुमा मंदिर में इसी सन् में मां पार्वती, मां दुर्गा एवं श्री गणेश जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस कार्य के पूर्ण होने तक न ही इसमें जिला प्रशासन ने कोई सहयोग दिया और ना ही जनपद ने। सारा कार्य क्षेत्र की जनता के सहयोग से पूर्ण हुआ।
ऐसे पहुंचे तिलक सिंदूर...
तिलक सिंदूर मंदिर तक पहुंचने के लिए इटारसी से जमानी तक पहुंचना होता है। जमानी से तिलक तक करीब 8 किमी की पक्की सड़क है, जो सीधे मंदिर परिसर तक पहुंचती है। यदि इस स्थान पर पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं तो यह एक अत्यंत सुरम्य पर्यटन स्थल बन सकता है।
यह है पुरानी मान्यता...
स्थानीय मान्यता के अनुसार पास की गुफा से एक सुरंग पचमढ़ी के निकट जम्बूद्वीप गुफा तक जाती है। यह सुरंग भस्मासुर के स्पर्श से बचने के लिए भगवान शिव द्वारा तैयार किया जाना बताया जाता है। कठिन एवं दीर्घ तपस्या के बाद भगवान शिव ने भस्मासुर को वरदान दिया था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा। भस्मासुर को वरदान मिलने पर उसने भगवान शिव पर ही उसका उपयोग करना चाहा तो भगवान शिव खुद को बचाते हुए वहां से भाग निकले थे। मान्यता है इस स्थान से गुजरने के दौरान ही उन्होंने तिलक सिंदूर गुफा का निर्माण किया तथा उससे पचमढ़ी तरफ निकले थे। इस मान्यता के कारण इस स्थान का धार्मिक महत्व और बढ़ गया है।
मेले में हजारों की भीड़...
शिवरात्रि के अवसर पर इस गुफा के पास एक छोटा सा वार्षिक मेला लगता है. भक्तगण जो किसी विशेष मनौती, जैसे स्वास्थ्य, संतान आदि के लिए यहां आते हैं, चट्टानी दीवार पर लाल रंग के थापे लगाते हैं, वे उपर की ओर उंगली करके थापे लगाते हैं। जब उनकी मनौती पूर्ण हो जाती है, तो भक्तगण फिर से आकर उस स्थान पर थापे लगाते हैं, परंतु इस बार अंगुली नीचे की ओर होती है।