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विवाहित महिलाओं के लिए बेहद जरूरी है गणगौर पूजा, जानिए पूजा करने का तरीका और महत्व

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Mar 24, 2023

हिंदू पंचांग के अनुसार गणगौर का पर्व 24 मार्च शुक्रवार को मनाया जाएगा। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति के लिए गणगौर की पूजा करेंगी। गण के रूप में भगवान महादेव और गौर के रूप में माता पार्वती की पूजा की जाएगी। शाम को सूर्यास्त से पहले गणगौर में जल लाकर जलाशयों, तालाबों और कुओं में विसर्जित किया जाएगा।

ईसर-गौर अर्थात महादेव-पार्वती की आराधना का यह पावन पर्व परस्पर स्नेह और साहचर्य की कामना से जुड़ा है। इसे शिव और गौरी की पूजा का पावन पर्व भी कहा जाता है। गणगौर का अर्थ है 'गण' और 'गौर'। गण का अर्थ है शिव (ईसर) और गौर का अर्थ है पार्वती। दरअसल गणगौर पूजन माता पार्वती और भगवान महादेव की आराधना का दिन है।

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया यानि नवरात्रि के तीसरे दिन मनाया जाने वाला गणगौर उत्सव महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य का पर्व है। शास्त्रों के अनुसार माता पार्वती ने भी अखंड सौभाग्य की कामना से घोर तपस्या की और उसी तपस्या के तेज में भगवान महादेव से मिलीं। इस दिन भगवान महादेव ने माता पार्वती और पार्वतीजी को सभी स्त्रियों को सौभाग्य का आशीर्वाद दिया था। कहा जाता है कि तभी से इस व्रत को रखने की प्रथा शुरू हुई।

ऐसे करें गणगौर की पूजा:-
वसंत और फाल्गुन की भावना में पृथ्वी और मिट्टी से सजी गणगौर की पूजा प्रकृति और स्त्री के संयोजन की बात करती है, जीवन को सृजन और उत्सव के उत्साह से जोड़ती है। गणगौर पूजन के लिए कुँवारी कन्याएँ एवं विवाहित स्त्रियाँ गणगौर के गीत गाते हुए, एक मटके में ताजा जल भरकर, हरे रंग की दाब और फूलों से सजाकर घर आती हैं। इसके बाद वे शुद्ध मिट्टी से शिव की ईसर मूर्ति और पार्वती की गौर की मूर्ति बनाकर चौकियों पर स्थापित करते हैं। महादेव-गौरी की पूजा सुंदर वस्त्र पहनकर की जाती है और चंदन, अक्षत, धूप, दीप, दूब और फूल से शुभ सभी चीजें अर्पित की जाती हैं। शुभ कामना लाने के लिए दीवार पर रोली, मेहंदी और काजल की सोलह बूंदें लगाई जाती हैं। चांदी की अंगूठी और सुपारी के साथ एक बड़ी थाली में पानी, दूध-दही, हल्दी, कुमकुम मिलाकर सुहाजाजल तैयार किया जाता है। दोनों हाथों में डुबकी लगाकर इस जल से गणगौर छिड़कने से पहले महिलाएं सुहाग के प्रतीक के रूप में इस जल को अपने ऊपर छिड़कती हैं। अंत में गणगौर माता की कथा सुनकर मीठा गुना या चूरमा चढ़ाया जाता है।