Mar 24, 2018
ग्वालियर। प्रसिद्ध शीतला माता मंदिर जहां दर्शन करने मात्र से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती हैं। तकरीबन 500 साल पुराना यह मंदिर दुर्गम पहाडी और जंगलों के बीच बना हुआ है, लेकिन नवरात्रि पर यहां लाखों भक्त किसी भी परेशानी की परवाह किए बगैर आकर माता के दर्शन करते हैं।
ग्वालियर से 40 कि.मी है ये मंदिर...
शीतला माता, जैसा नाम वैसा काम जी हां इस मंदिर पर आने के बाद इंसान को मन के अंदर शीतलता का अहसास होता है।ग्वालियर शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सातऊ की पहाडिया पर बना है ये माता का मंदिर। जहां नवरात्री पर 9 दिनों तक लगातार भक्तों का तांता लगा रहता है।
क्या है इतिहास...
मंदिर के आसपास घनघोर जंगल है, लेकिन दर्शन करने के लिए आने वालों को आज तक किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है।दरअसल में शीलता माता की कहानी कुछ इस प्रकार है, कि एक समय इस इलाके में अकाल पड़ गया था, पशुओं तक के लिए चारे और पानी की व्यवस्था तक नहीं थी, जिस पर यहां का एक चरवाह अपने पशुओं को लेकर भिण्ड जिले के खरौआ गांव में चला गया जहां पर शीतला माता का एक मंदिर था। चरवाह रोज माता की पूजा करता था और पशुओं को चराता था, लेकिन जब बारिश शुरु हो गई तो वह वापस अपने गांव आने लगा, जिस पर शीतला माता प्रकट हुई, और उस चरवाहे के साथ साथ सातऊ गांव आ गई चरवाहे ने माता को पहाडी पर बैठने के लिए कहा और उसी समय से यहां माता का चमत्कार होने लगा, धीरे धीरे लोग मंदिर पर आने लगे और आज इलाके इस मंदिर पर नवरात्री के दौरान लाखों की संख्या में भक्त आकर माता के दर्शन करते हैं।
माता के विराजित होते ही दूर हो गई पानी की कमी...
इस मंदिर के पुजारी का कहना है, कि उनकी पांच पीढ़िया माता की सेवा करते आए हैं, इस दौरान माता के कई चमत्कार उन्होंने देखे हैं। बताया जाता है, कि इस स्थान पर पहले पानी की कमी थी, पीने के पानी के लिए लोगों को कोसों दूर जाना पड़ता था, लेकिन माता के यहां विराजमान होने के बाद इलाके में पानी ही पानी हो गया है, अब हालात यह है कि किसी भी स्थान पर वोर करने पर पानी आसानी से निकल आता है इसके अलावा मंदिर पर ग्वालियर चंबंल अंचल के अलावा आसपास के राज्यों से भी भक्त यहां आकर माता के दर्शन करते हैं।
पुजारी का ये भी कहना है, कि इस स्थान पर पहले माता का शेर माता के दर्शन करने के लिए आता था, उसके कई प्रमाण भी मिले इसके साथ-साथ पहले इलाके के नामी ग्रामी डकैत भी माता के मंदिर में दर्शन करने आते थे, इसलिए कुछ लोग इन्हें डकैतों की माता के नाम से भी जानते हैं।