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400 में से एक भी बच्चा पढ़ाई करने नहीं पहुंचा स्कूल

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Oct 13, 2016

इंदौर। प्रशासन के रिकॉर्ड के मुताबिक विशेष अभियान चलाकर भीख मांगने वाले और बाल मजदूरी करने वाले 400 बच्चों का पुनर्वास किया गया है। जिससे उनके भविष्य में सुधार के लिए उन्हें भिक्षावृत्ति और बाल मजदूरी से निजात मिले। लेकिन ये आंकड़े महज रस्म अदायगी के हैं। हकीकत यह है कि 400 में से एक भी बच्चा पढ़ाई करने स्कूल नहीं पहुंच सका। कारण, बच्चों को समझाइश देकर वापस उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। भूख के कारण मजदूरी करने वाला बच्चा भी भीख मांगने लगता है।

  1. मोती तबेला में बैग बनाने वाले कारखाने में छापा मारकर सात साल के राकेश को रेस्क्यू किया। वह चार दिन एनजीओ में रहा। फिर उसे उत्तर प्रदेश घर भेज दिया गया। अब बच्चा किस स्थिति में किसी को नहीं पता।
  2. पलासिया क्षेत्र से पिछले दिनों 8 साल की पूजा को भीख मांगते पकड़ा गया। उसके साथ उसके तीन भाई-बहन थे। माता-पिता को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। कायदे से बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम होना था, लेकिन बच्चे फिर भीख मांगने लगे।
  3. प्रशासन के सख्त हिदायत के बाद हर शनिवार को महिला सशक्तीकरण विभाग, चाइल्ड लाइन एनजीओ, पुलिस और श्रम विभाग के आठ-दस सदस्य रेस्क्यू एक्टिविटी करने निकलते हैं। इसमें बाल श्रमिक और बाल भिक्षुकों को पकड़ा जाता है। इस दौरान काफी जद्दोजहद भी होती है। गरीबी का हवाला देकर माता-पिता बच्चों को छोड़ देने की मन्न्त करते हैं, लेकिन सरकारी विभाग खानापूर्ति में आंकड़े चढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा बच्चों को रेस्क्यू करते हैं।
  4. महिला सशक्तीकरण विभाग बच्चों को चार-पांच दिन तक अलग-अलग एनजीओ में रखते हैं। उनके रहने और खाने-पीने पर पैसा खर्च किया जाता है। बाद में बाल कल्याण समिति समझाइश देकर छोड़ देती है। बस यहीं प्रशासन की जिम्मेदारी खत्म। घर लौटने के बाद बच्चे की स्थिति का प्रशासन के पास कोई रिकॉर्ड नहीं रहता।

विभागों में तालमेल का अभाव

प्रशासनिक अधिकारी अप्रत्यक्ष चर्चा में बताते हैं कि महिला सशक्तीकरण, श्रम और चाइल्ड लाइन एनजीओ बच्चों को मुक्त कराकर भूल जाते हैं। इसके बाद शिक्षा विभाग के अफसरों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों के घर की लोकेशन के अनुसार स्कूल में दाखिला कराएं। अब तक किसी भी बाल भिक्षुक या बाल श्रमिक बच्चे का एडमिशन नहीं हुआ है। विभागों में तालमेल के अभाव में योजना का कोई मतलब ही नहीं है।

ये होना चाहिए

बाल श्रम व बाल भिक्षावृत्ति समाज के लिए अभिशाप है, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि गरीब का घर चलाने के लिए बच्चे माता-पिता की मदद करते हैं, अगर बंद हो चुकी स्पॉन्सरशिप योजना फिर से शुरू हो तो इससे बच्चों को भी फायदा होगा। इसके तहत बच्चों को 500 से 1 हजार रुपए मासिक की आर्थिक मदद मिलती है। इसमें कमाई और पढ़ाई साथ-साथ चलेगी। यह लोग सिर्फ कमाने के लालच में शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। -वसीम इकबाल डायरेक्टर, चाइल्ड लाइन व आस

स्कूल में एडमिशन के पूरे प्रयास करते हैं

महिला सशक्तीकरण से रेस्क्यू किए बच्चों की सूची आती है। उनमें से जो बच्चे पहले से स्कूल में रजिस्टर्ड रहते हैं तो उन्हें फिर से उसी स्कूल में भेजते हैं। बाकियों को स्कूल में एडमिशन के लिए प्रयास करते हैं, लेकिन इसमंे माता-पिता से सहयोग नहीं मिल पाता। इससे काफी परेशानी आती है। कई बच्चे एडमिशन के बाद भी स्कूल नहीं जाते। -अक्षय सिंह राठौर जिला परियोजना समन्वयक, जिला शिक्षा विभाग

बच्चों के पुनर्वास की हमारी महत्वाकांक्षी योजना है। ये तो नहीं हो सकता कि हम एक साल में एक भी बच्चे का एडमिशन न करा पाए हों। प्रशासन लगातार प्रयास कर रहा है, अगर कुछ बच्चे पुनर्वास से छूट गए हैं तो हम उनका भी पुनर्वास कराएंगे। कार्रवाई लगातार जारी है। -पी. नरहरि कलेक्टर

हमारा बेटा पहले मेहनत करता था, पकड़ाने के बाद भीख मांगना पड़ती है

बच्चा काम नहीं करेगा तो हम खाएंगे क्या? सरकार के लोग बच्चे को पकड़कर ले जाते हैं तो फिर कोई काम भी नहीं देता। चार दिन बच्चे का पेट भरते हैं और पांचवें दिन फिर पेट की आग से सामना होता है। सबसे बड़ी परेशानी उस समय होती है, जब बाल मजदूरी में काम छुड़वाने के बाद दोबारा वो मालिक काम नहीं देता। हमारा बच्चा पहले मेहनत करके घर का खर्च चला रहा था, लेकिन अब भीख मांगने की स्थिति है। - मुक्त कराए बच्चे की मां