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भोपाल में 300 साल पहले तैयार हुआ था पहला कवाब 

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Dec 12, 2016

भोपाल। वीआईपी रोड, भोपाल की झील, जंगलों से घिरी पहाडिय़ां, चौक बाजार की रौनक और लजीज कबाबों की खुशबू यह है भोपाल की शान। नवाबों के दम तोड़ती इमारतों के बीच आज भी कुछ जिंदा है तो वह है उनके खाने का स्वाद। जो साल दर साल और लजीज होता जा रहा है। आज हम बात कर रहे हैं भोपाल के फेमस कबाबों की। निजाम काल में लगभग 300 साल पहले कबाबों का चलन यहां शुरू हुआ। आज पुराने भोपाल की चटोरी गलियों में 200 से ज्यादा कबाब की वैरायटी पकायी जाती हैं। यहां के कबाब मास्टर शेफ विकास खन्ना और संजीव कपूर के भी फेवरेट हैं।

अफगान के मसालों से महकी रसोई
अफगानिस्तान का चपली कबाब, ईरान का कबाब कूबिदे और ग्रीस शक्श कबाब भी भोपाल में निजाम शासकों के समय ही आया। जैसे-जैसे नवाबों के मुगलों से संबंध दोस्ताना हुए वैसे-वैसे उनके खाने के तौर तरीके निजामी रसोईयों में इस्तेमाल किए जाने लगे। नवाबों की रसोई में अफगानिस्तान और ईरान के मांसाहारी मसालों का खूब इस्तेमाल किया जाता था।

तलवार पर पकाया था पहला कबाब
जानकार बताते हैं कि भोपाल में कबाब का कल्चर नबावों के सैनिकों ने शुरू किया। दरअसल वे युद्ध के दौरान कई महीनों तक अपने घर से बाहर होते थे। कभी-कभी जंगलों में दिन गुजारने पड़ते थे। ऐसे में खाने के लिए जानवरों का गोश्त ही हुआ करता था। सैनिक गोश्त को तलवार में फंसाकर आग के ऊपर सेंका करते थे।
बाद में यही चलन सीक कबाब के रूप में प्रचलित हो गया। इसके बाद कीमे को अपनी ढ़ाल पर सेंकना शुरू किया जिसने आगे चलकर शामी कबाब की किस्में तैयार की। इसके बाद कबाब नवाबी रसोई का अहम हिस्सा बन गए। जो कबाब जंग के मैदान में बिना मसालों के पकाए जाते थे वे नवाबों की रसोई में मसालों के साथ पकने लगे।

सबसे ज्यादा प्रयोग हुए यहां
भोपाल में नवाबी काल से अब तक कबाबों को लेकर सबसे ज्यादा एक्सपेरीमेंट हुए हैं। अपने शो की लॉचिंग के दौरान भोपाल आए मास्टर शेफ विकास खन्ना ने कहा था कि जैसे हैदाराबाद में बिरयानी के एक्सपेरिमेंटल टेस्ट मिलते हैं वैसे ही भोपाल में कबाबों के डिफरेंट टेस्ट हैं। भोपाल में सीक कबाब की 38 और शामी कबाब की 45 वैरायटी मिलती हैं। इसके अलावा तगंड़ी कबाब, रोस्ट कबाब और तंदूरी कबाब की 80 से ज्यादा वैरायटी और टेस्ट हैं।

यहां से आती है कबाब की महक
पुराने भोपाल की तंग गलियों में शाम से देर रात तक कबाबों की महक आती रहती है। बड़े रेस्ताओं में जाने की बजाए लोग इन चटोरी गलियों में आना ज्यादा पसंद करते हैं। बुधवारा में जुम्मन मियां के कबाब और इतवारा में खान चाचा की रसोई कबाबों की सबसे ज्यादा वैरायटी परोसने के लिए फेमस है। इसके अलावा जामा मस्जिद और चौक बाजार की गलियां भी शाम 7 बजे से गरमा-गरम कबाब की खुशबू से महकने लगतीं हैं। यहां कबाब की दर्जनों चौपाटियां हैं, जहां हर शाम कबाब खाने के शौकीनों की भीड़ जमा होती है और घंटों लाइन में लगने के बाद मनचाहा नवाबी कबाब हाथ में होता है।