Aug 5, 2022
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सेवायोजन और पेंशन आदि की सुविधा देने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे लोगों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने प्रदेश में एसएसबी के गुरिल्लों और उनकी विधवाओं को मणिपुर की तरह नौकरी और पेंशन देने का आदेश दिया है। इस आदेश के बाद राज्य के 20 हजार से अधिक गुरिल्लों और उनके परिवारों को लाभ मिल सकेगा।
टिहरी और पिथौरागढ़ के लोगों ने डाली थी याचिका
टिहरी गढ़वाल की रहने वाली अनुसुइया देवी और पिथौरागढ़ के मोहन सिंह के साथ 38 लोगों ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। इनका कहना था कि उन सभी को आइटीबीपी से सशस्त्र प्रशिक्षण प्राप्त हैं। साथ ही उन लोगों ने सरकार के लिए वॉलेंटियर के रूप में काम भी किया। नाम परिवर्तन के साथ गृह मंत्रालय के अधीन आने के बाद साल 2003 में उन्हें भी एसएसबी शामिल कर लिया गया, लेकिन इसके बाद उनसे कोई काम नहीं करवाया गया।
मणिपुर में मिल रहा लाभ
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि मणिपुर के गुरिल्लों ने इस मामले में वहां के हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मणिपुर हाईकोर्ट ने इन गुरिल्लों को नौकरी पर रखने और रिटायरमेंट के बाद पेंशन की बात कही थी। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था। इसके बाद मणिपुर सरकार ने वहां के गुरिल्लों को दोबारा काम दिया। तभी से वहां गुरिल्लों को सभी सेवाएं दि जा रही हैं। साथ ही गुरिल्लों की विधवाओं को पेंशन दी जा रही है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जज शरद कुमार शर्मा ने केंद्र सरकार को उत्तराखंड के गुरिल्लों को मणिपुर की भांति सुविधाएं देने के निर्देश दिए है।
चीन युद्ध के बाद दी गई थी लोगों को ट्रेनिंग
1963 के चीन युद्ध में भारत को भारी नुकसान झेलना पड़ा था। जिससे सबक लेते हुए सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) का गठन किया गया। इनका काम था रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के लिए सशस्त्र सहायता प्रदान करना। इसके तहत सेना ने सीमा क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के मन में राष्ट्रीय भावना जगाने का काम किया। इससे सेना को अच्छा खासा लाभ भी हुआ। इस बेसिक कोर्स से चुने गए युवक-युवतियों को 45 दिन की कठिन गुरिल्ला ट्रेनिंग दी जाती थी। हर बार के प्रशिक्षण में गुरिल्लों को प्रशिक्षण अवधि का एक निश्चित मानदेय दिया जाता था। पर आगे चलकर इन लोगों से उनका काम छीन लिया गया था।