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मणिपुर हिंसा को हुए दो साल अब भी नहीं बदलें राज्य के हालात

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May 3, 2025

मणिपुर में 2023 में जो कुछ हुआ उसे भुल पाना देश के लिए काफी मुश्किल है। महिलाओं का न्यूड परेड, जलते घर वो सारे दृश्य अब भी हरे हो जाते है। जब मणिपूर हिंसा शब्द मात्र सुनाई देता है। उत्तर-पूर्व का सुंदर राज्य मणिपूर जो कभी अपने सांस्कृतिक सभ्यताओं और जातिगत भिन्नताओं के लिए जाना जाता था। वो राज्य आज जातीय हिंसा का सबसे बड़ा उदाहरण बन चुका है। जिस जातिगत हिंसा में 250 से अधिक लोगों ने अपनी जान गवाई और 60000 से अधिक लोग अपना घर और गांव गवा चुके हैं।

क्या थी मणिपूर हिंसा की पृष्ठभूमि

मणिपूण हिंसा की पृष्ठभूमि मेतई जाति के एसटी में शामिल होने के मांग से तैयार हुई। मणिपूर के दो जातियों मेतई और कूकी है। मेतई जाति राज्य की प्रभावशाली जाति है। मणिपुर में बहुसंख्यक आबादी मेइती समुदाय की है, जो मुख्यतः इंफाल घाटी में रहते हैं। यह जाति हिंदू और सनातन धर्म से जुड़ी हैऔर लंबे समय से सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक रूप से प्रभावशाली रही हैं।

वहीं कुकी और नागा समुदाय पहाड़ी इलाकों में रहते हैं और अनुसूचित जनजातियों  में शामिल हैं। ये मुख्यतः ईसाई धर्म का पालन करते हैं और लंबे समय से आदिवासी अधिकारों, भूमि, और पहचान की रक्षा के लिए संघर्षरत हैं। लेकिन जब मेतई समुदाय ने एसटी का दर्जा मांगा तो कुकी समुदाय को लगा की एसटी का दर्ज मिलने से यह जाति और भी शक्तिशाली हो जाएगी। जिस कारण कुकी समुदाय ने इसका विरोध किया।

मेतई समुदाय को क्यों चाहिए थी एसटी श्रेणी

मेतई समुदाय लंबे समय से एसटी श्रेणी की मांग कर रहा था। क्योंकि पहाड़ों की भूमि केवल एसटी के लिए आरक्षित है। जिसकारण कुकी समुदाय को डर था कि अगर मेतई को एसटी का दर्ज मिला तो वह पहाड़ों पर जमीन खरीदेंगे और कुकी समुदाय को विस्तापित कर देंगे।

चुराचांदपुर और इंफाल के बीच भड़की थी हिंसा

इंहीं सब वजहों के कारण चुराचांदपुर और इंफाल क बीच हिंसा भड़की। मार्च-अप्रैल 2023 में मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश, जिसमें राज्य सरकार को मेतई समुदाय को ST दर्जा देने पर विचार करने को कहा गया। इस वाक्य  ने आग में घी डालने का काम किया। और 3 मई 2023 को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) द्वारा आयोजित एक "आदिवासी एकता मार्च" के दौरान इंफाल और चुराचांदपुर जिलों में हिंसक झड़पें हुईं। और धीरे-धीरे इस झड़प ने महीने भर चलने वाली हिंसा का रूप ले लिया। और पूरे राज्य की शांति को जला दिया।

विस्थापित शिविरों में 2 साल से इंताजर कर रहें 60 हजार लोग

मणिपूर हिंसा के बाद विस्थापित हुए कुकी समुदाय के लोग आज भी विस्थापित का जीवन बीता रहें हैं। दो साल बीत चुका है। लेकिन उनके जीवन में परिवर्तन नहीं आया है। पाकिस्तान और नक्सलवाद को मुहतोड़ जवाब देने वाली सरकार मणिपूर को बदहाल से बहाल नहीं कर पाई है। राज्य से राष्ट्रपति शासन तो हटा दिया गया है। सड़कों पर आवाजही सुचारू हो गई है। लेकिन विस्थापितों का जीवन अभी नरकीय बना हुआ है। उनके पास ना रोजगार है ना घर। अस्थाई आवास का वादा करने वाली मनिपूर सरकार ने उन्हें एक कॉलेज में बंद होकर जीने के लिए मजबूर कर दिया है। जहां कई लोग आत्महत्या कर चुके है। और कई बीमारी से जान गवा चुके है।

 

 

Report By:
RAGINI RAI