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पूर्णिमा और अमावस्या का रहस्यमयी संसार: शक्ति, साधना और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम

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Aug 9, 2025

पूर्णिमा और अमावस्या का रहस्यमयी संसार: शक्ति, साधना और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम

भारतीय संस्कृति में पूर्णिमा और अमावस्या केवल चंद्र चक्र की घटनाएं नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन के गहरे सूत्र हैं। पूर्णिमा प्रकाश, समृद्धि और ऊर्जा का प्रतीक है, जबकि अमावस्या आत्मचिंतन और शुद्धि का समय मानी जाती है। 9 अगस्त 2025 को श्रावण पूर्णिमा और 25 अगस्त को भाद्रपद अमावस्या मनाई जाएगी। ये दिन साधना, पूजा और पितृ तर्पण के लिए विशेष हैं।

पूर्णिमा: प्रकाश और शक्ति का उत्सव

पूर्णिमा वह रात है जब चंद्रमा अपनी पूर्ण आभा में नहाया होता है। इसे आध्यात्मिक ऊर्जा का शिखर माना जाता है। इस दिन ध्यान, व्रत और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। 9 अगस्त 2025 को पड़ने वाली श्रावण पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। यह दिन भाई-बहन के प्रेम के साथ-साथ आध्यात्मिक साधना के लिए भी खास है। संतों की परंपरा में पूर्णिमा को विशेष साधना का समय माना जाता है।

अमावस्या: आत्मचिंतन और शुद्धि का अवसर

अमावस्या, जब चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता, आत्मनिरीक्षण और पितृ पूजन का समय है। 25 अगस्त 2025 को भाद्रपद अमावस्या पर पितरों के तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व रहेगा। तंत्र और मौन साधना के लिए यह रात अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है। इस दिन नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर आंतरिक शांति प्राप्त की जा सकती है।

प्रकाश और अंधकार का संतुलन

पूर्णिमा और अमावस्या जीवन के दो पहलुओं—प्रकाश और अंधकार—का प्रतीक हैं। पूर्णिमा बाहरी सफलता और ऊर्जा प्रदान करती है, जबकि अमावस्या आत्मिक शुद्धि का मार्ग दिखाती है। दोनों मिलकर जीवन को संतुलित और समृद्ध बनाते हैं।

Report By:
Monika