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मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए इस दिवाली में जलाएँ मिट्टी का दीया

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Oct 26, 2016

दीपावली के शुभागमन से तो जैसे संपूर्ण वातावरण अपने आप ही जगमगा उठता है। हल्की गुलाबी ठंड के इस मौसम में हर कोई एक नई स्फूर्ति महसूस करता है जिससे हर्षोल्लास भरे इस त्योहार को जोर-शोर से मनाने को भी खुद-ब-खुद मचल उठता है। हफ्तों पहले से ही हम लोगों के मन मस्तिष्क में लक्ष्मी-गणेश, कमल, स्वास्तिक, ओम, दीया, कलश-पल्लव, शुभ-लाभ इत्यादि की छवियां उभरने लगती है। इन सबका अपना-अपना प्रतीकात्मक महत्त्व भी है। आज हम आपको दीपावली पर दीए का महत्व बता रहे हैं....
 
माता लक्ष्मी की कृपा से ही पुरे संसार को धन, सुख - समृद्धि तथा सम्पत्ति की प्राप्ति होती हैं। पुराणों में लक्ष्मी माता के अवतार लेने के पीछे एक कहानी का वर्णन किया गया हैं। शास्त्रों के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा ने सभी देवताओं को श्राप दिया। जिससे सभी देवता धनहीन हो गये। धनहीन होने के बाद सभी देवता घबरा गए और इस श्राप से बचने के लिए भगवान विष्णु जी के पास गये। देवताओं से श्राप के बारे में सुनकर विष्णु जी ने समुन्द्र मंथन की आज्ञा दी। समुन्द्र में से एक कमल का फूल निकला। जिस पर लक्ष्मी माता विराजमान थी। लक्ष्मी माता के अवतार लेते ही सभी देवताओं को तथा समस्त संसार को धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति हो गई। इसके बाद सभी देवताओं ने उनके सामने मिट्टी का दीप जलाकर उनकी पूजा अर्चना की। 
 
असल में लक्ष्मी माता का सम्बन्ध शुक्र तथा चन्द्र ग्रह से होता हैं। इसके पीछे भी एक कारण हैं। ऐसा माना जाता हैं कि संसार में जितनी भी मिट्टी हैं उस पर शुक्र ग्रह का आधिपत्य होता हैं तथा कमल का फूल मिट्टी और पानी से बने कीचड़ में ही होता हैं।  सभी फूलों में कमल का फूल ही एक ऐसा पुष्प हैं जिसे सभी देवी और देवता पसंद करते हैं तथा इसे सभी अपने मस्तक पर लगाते हैं।
 अगर आप धनहीन हैं औऱ लक्ष्मी माता को प्रसन्न करना चाहते हैं तो इस दिवाली मिट्टी के दीप ही जलाए, और लक्ष्मी माता की विधि विधान से पूजा करें।
 
दीया
दीया प्रकाश का प्रतीक है। दीया के सच की अनुभूति को पाए बिना जीवन के अवसाद और अंधेरे को सदा सर्वदा के लिए दूर कर पाना कठिन ही नहीं, नामुमकिन भी है। दीये का सच उसके स्वरूप में है। दीया भले ही मरणशील मिट्टी का है, परन्तु ज्योति ही अमृतमय आकाश की है। जो धरती का है, वह धरती पर ठहरा है, लेकिन ज्योति तो निरंतर आकाश की ओर भागी जा रही है। ठीक दीये की ही भांति मनुष्य की देह भी मिट्टी ही है, किंतु उसकी आत्मा मिट्टी की नहीं है। वह तो इस मिट्टी के दीये में जलने वाली अमृत ज्योति है। हालांकि अहंकार के कारण वह इस मिट्टी की देह से ऊपर नहीं उठ पाती है। आत्मा की ज्योति जलते ही हम लोगों में स्नेह, सौहार्द, ममत्व, इंसानियत जागृत होगी और अपना-पराया, उच्च-नीच का भेद-भाव समाप्त हो जायेगा।