Nov 23, 2018
साल 2018 का अंतिम पर्व कार्तिक पूर्णिमा सनातन धर्म का बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आता है। इसी दिन महादेव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का संहार किया था इसी कारण से इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस अवसर पर पवित्र नदी का स्नान, दीपदान, भगवान की पूजा, आरती, हवन तथा दान का बहुत महत्व है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है दरअसल इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, दान, भगवान की पूजा, आरती, हवन आदि का बहुत महत्व है इस दिन किसी भी धार्मिक कार्य का सौ गुना फल प्राप्त होता है इस बार कार्तिक पूर्णिमा 23 नवंबर को है इस दिन लोग गंगा नदी में स्नान करते हैं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है जिसे त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है कार्तिक महीने में दीपक का विशेष महत्व है। दीपक रोशनी का प्रतीक है जिससे अंधकार दूर होता है इसलिए इस दिन बनारस में देव दीपवली, दीवाली के ठीक 15 दिन बाद मनाई जाती है।
ऐसी है पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से पूरे साल जितना गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है साथ ही इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप दान का पुण्य-फल दस यज्ञों के बराबर होता है जानकारों के मुताबिक इस दिन गंगा स्नान के दान करना चाहिए इस दिन मौसमी फल (संतरा,सेब,शरीफा आदि), उड़द दाल, चावल और उजली चीजों का आदि का दान शुभ माना गया है।
गुरु पर्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ उनका जन्म संवत 1526 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ सिख समुदाय के लोग इस दिन को प्रकाश उत्सव और गुरु पर्व (गुरु परब) के रुप में मनाते हैं गुरु नानक देव सिख धर्म के पहले गुरु थे गुरु पर्व सिखों का सबसे महत्वपू्र्ण पर्वों में से एक है और इस दिन गुरु ग्रंथ साहिब में लिखे नानक देव की शिक्षाएं पढ़ी जाती हैं गुरु नानकदेवजी की जयंती देशभर में प्रकाश पर्व के रूप में मनाई जाती है इस दिन प्रकाश उत्सव के दिन प्रभातफेरी निकाली जाती है जिसमें भारी संख्या में संगतें शिरकत करती हैं इस दिन सभी गुरुद्वारे पर प्रकाश पर्व की रौनक बस देखती ही बनती है अमृतसर का गोल्डेन टेंपल भी इस दिन रोशनियों से जगमगा उठता है।
देव दीपावली
देव दीपावली यानी देवताओं की दीपावली दीपावली के ठीक 15 दिन बाद देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है यह दीपावली गंगा नदी की पूजा के लिए काशी यानी बनारस में मनाई जाती है ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव धरती पर आते हैं इसलिए भगवान शंकर की नगरी काशी में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है इस दिन गंगा नदी के जल पर और किनारे हजारों की संख्या में दीप जलाए जाते हैं यह उत्सव मनाने के पीछे एक कारण यह भी बताया जाता है कि देवउठनी एकादशी के चार माह बाद भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं इस खुशी में सभी देवता स्वर्ग से आ कर काशी के घाटों पर दिवाली मनाते हैं देव दीपावली यानी देवतओं के आने की खुशी में जो दीपावली गंगा तट पर मनायी जाती है।







