Dec 1, 2025
“जब दो कदम बने सात जन्मों का वादा—जानिए सात फेरों में छिपा प्रेम, विश्वास और साथ का पवित्र रहस्य”
शादी सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, हिंदू संस्कृति में इसे दो आत्माओं का अनंत मिलन माना गया है। सात फेरे और सात वचन इस बंधन को जन्म-जन्मांतर तक मजबूत बनाने का प्रतीक हैं। अग्नि को साक्षी मानकर लिया गया हर फेरा जीवनभर एक-दूसरे का साथ निभाने की प्रतिज्ञा है। लेकिन ‘सात’ का ही चुनाव क्यों? इन सात फेरों के पीछे छिपे अर्थ वास्तव में विवाह को आध्यात्मिक और बेहद विशेष बना देते हैं।
सात फेरे: सिर्फ परंपरा नहीं, जीवन का वचन
हिंदू विवाह दुनिया की सबसे प्राचीन और गहन रीति-रिवाजों में से एक है। इसे केवल दो व्यक्तियों का साथ नहीं, बल्कि दो परिवारों और दो संस्कृतियों का शुभ मिलन माना गया है। विवाह के केंद्र में रहने वाला ‘सप्तपदी संस्कार’ यानी सात फेरे, वर-वधु को जीवन भर के लिए भावनात्मक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से जोड़ते हैं।
अग्नि को साक्षी बनाकर लिया जाने वाला आध्यात्मिक बंधन
विवाह में अग्नि को देवताओं का प्रतिनिधि माना जाता है। आग के चारों ओर लिए गए फेरे सिर्फ रिवाज नहीं, बल्कि हर जन्म में एक-दूसरे के साथ खड़े रहने की प्रतिज्ञा हैं। शुरुआत के चार फेरों में वर आगे चलता है, जो सुरक्षा और जिम्मेदारी का प्रतीक है, जबकि अंतिम तीन फेरों में वधू आगे रहती है, जो सौभाग्य, प्रेम और परिवार के पालन-पोषण की प्रतीक मानी जाती है।
‘सात’ अंक क्यों है इतना खास?
हिंदू दर्शन में ‘सात’ का अंक शुभता और समृद्धि का द्योतक है—
सात सुर
इंद्रधनुष के सात रंग
सप्ताह के सात दिन
शरीर के सात चक्र
इसी तरह विवाह के सात फेरे भी संतुलन, स्थिरता और निरंतरता को दर्शाते हैं। यह प्रेम और कर्तव्य का ऐसा संतुलन है जो रिश्ते को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
सात वचन: जन्मों तक साथ निभाने का प्रण
हर फेरा जीवन के किसी न किसी महत्वपूर्ण आयाम का वचन है— भोजन, शक्ति, धन, प्रेम, संतान, धर्म और मित्रता। इन वचनों के माध्यम से वर-वधु यह प्रतिज्ञा लेते हैं कि वे हर सुख-दुख में एक-दूसरे के साथ रहेंगे और आने वाले जन्मों में भी यही साथ कायम रहेगा।







